नियोग
कपिल आर्य :
क्या नियोग करना धर्म हैं?जिस किसी भी आस्तिक व्यक्ति ने वैदिकसिद्धान्तों का व्यापक अध्ययन किया है वह कर्मको तीन प्रकार का मानता है।1. धर्म 2. अधर्म, 3. आपद्धर्म।1. धर्म – वह सब कर्म जिनके करने से पुण्य और जिनकेन करने से पाप होता है। जैसे सन्ध्या (सुबह शामपरमात्मा का ध्यान स्मरण) करना, सुपात्र को दानदेना, वाणी से सत्य, प्रिय और पहितकारी बोलना,सुख दुःख और हानि लाभ में समान रहना आदि।2. अधर्म- उन कर्मो का नाम है जिनके करने से पापऔर जिनके न करने से पुण्य होता है जैसे शराब पीना,जुआ खेलना, चोरी, डकैती करना, ठगना, गाली देना,अपमान करना, निरापराध को दण्ड देना आदि।3 .आपद्धर्म – वे सभी कर्म जिनको सामान्यस्थितियों में करना अच्छा नहीं कहा जाता परन्तुजिनको आपदा अथवा संकट में करना पाप कर्म नहींकहलाता हैं। जैसे शल्य चिकित्सक द्वारा प्राणरक्षा के लिए मनुष्य के शरीर पर चाकू चलाना, देशकि सीमा पर शत्रु के प्राणों का हरण करना, जंगल मेंनरभक्षी शेर का शिकार करना, सुनसान द्वीप परप्राण रक्षा के लिये माँस आदि ग्रहण करना आदि।विवाह धर्म का अंग है, व्याभिचार अधर्म का अंग हैठीक वैसे ही नियोग आपद्धर्म का अंग है।शंका 2 . नियोग का मूल उद्देश्य क्या हैं ?प्रिय पाठकों कृपया एक साधारण से प्रश्न परविचार करें। यदि आपसे पूछा जाए कि आप रोटी,चावल, दाल, सब्जी, दूध, दही आदि कब खाते हैं तोआप कहेंगे “प्रतिदिन” । अब यदि आप से पूछा जाएकि कुनैन आप कब खाते हैं तो आप कहेंगे कि “केवलमलेरिया में” । क्या कड़वी कुनैन भी खाने की चीजहै । परन्तु मलेरिया में हम न खाने वाली वस्तु को भीखाते हैं ताकि हमारी जान बच जाए। जैसे रोटीचावल आदि सामान्य जीवन का अंग है ठीक इसीतरह विवाह भी सामान्य जीवन का अंग है । जैसे नखाने वाली कुनैन भी आपत्ति में खाना उचितहोता है इसी तरह सामान्य जीवन का अंग न होतेहुए भी आपत्ति काल में नियोग सही होता है।सभी आक्षेपकों ने नियोग को अनैतिक कहा औरइसकी निन्दा की। परन्तु किसी ने भी इस बात परध्यान नहीं दिया कि नियोग मूलतः समाजव्यवस्था का सन्तुलन रखने और व्याभिचार कोबचाने के लिए ही एक आपद्धर्म है।जैसे स्वस्थ व्यक्ति को दवा की जरूरत नहीं है वैसे हीसामन्य रूप से संतान उत्पन्न होने पर भी नियोग कीजरूरत नहीं है । जैसे कुछ परिस्थितियों मे दवा केबिना शरीर मर जाता है या स्थायी रूप से विकृत /अक्षम हो जाता है वैसे ही बिना नियोग केव्याभिचार से समाज विकृत हो जाता है। जैसेचिकित्सा के कुछ नियम हैं (जैसे दवा की मात्रा /पथ्य/अपथ्य) वैसे नियोग के भी कुछ नियम हैं । जैसेबिना नियम के दवाई लाभ के स्थान पर हानिकरती है वैसे ही बिना नियम पालन के नियोगसमाज को हानि पहुंचाता है।नियोग का केवल और केवल एक ही प्रयोजन हैंअसक्षम व्यक्ति के लिए संतान उतपन्न करने के लिए,विधवा अथवा जिसका पति उपलब्ध न हो उसे संतानउत्पन्न करने के लिए जिससे उसका जीवन सुचारुप्रकार से व्यतीत हो सके, समाज में मुक्त सम्बन्ध परलगाम लगाकर, उसे नियम बद्ध कर व्यभिचार को बढ़नेसे रोकने के लिए।शंका 3. व्याभिचार और नियोग में क्या अन्तर हैं?व्याभिचार और नियोग में अन्तर – बहुत से लोगआलोचना करते हुए कहते हैं कि व्याभिचार औरनियोग एक समान हैं। दोनों में कोइ अन्तर नहीं है।इसलिए नियोग भी पाप और अधर्म है। जैसे अपराधीकिसी को चाकू से घायल करता है या कोई भी अंगकाटता है तो वह अपराध है क्योंकि उसमें कोईनियम और विधि नहीं है। परन्तु जब एक शल्यचिकित्सक किसी रोगी का कोइ अंग चाकू सेकाटता है तो वह नियम से करता है । भले ही वहचाकू से रोगी को चोट पहुंचा रहा है परन्तु वह चाकूका प्रयोग नियम और चिकित्सा विधि के अनुसाररोग़ी के हित के लिए करता है। इसी प्रकारव्याभिचार और वेश्यागमन का कोइ नियम नहीं हैऔर समाज के लिए हानिकारक है। परन्तु नियोगविधि और नियमों से बंधा हुआ है और समाज के हितमें है।शंका 4 . महर्षि दयानन्द के नियोग विषय पर क्याविचार हैं?ॠग्वेदादि भाष्य भूमिका के नियोग प्रकरण मेंमहर्षि दयानन्द जी लिखते हैं –“इसी प्रकार से विधवा और पुरूष तुम दोनो आपत्कालमें धर्म करके सन्तान उत्पत्ति करो और उत्तम-उत्तमव्यवहारों को सिद्ध करते जाओ। गर्भ हत्या याव्याभिचार कभी मत करो। किन्तु नियोग ही करलो। यही व्यवस्था सबसे उत्तम है।”इस वाक्य से अर्थ निकलता है -1. नियोग आपद्धर्म हैक्योंकि नियोग केवल आपत्काल मे किया जाता है। 2. व्याभिचार और गर्भपात अधर्म/महापाप हैइसलिए व्याभिचार और गर्भपात नहीं करनाचाहिए। 3. नियोग व्यभिचार और गर्भपात जैसेमहापापों से बचने का उपाय है।अधिक जानकारी के लिए सत्यार्थ प्रकाश मेंनियोग विषय को पढ़े।शंका 5. क्या प्राचीन काल में नियोग व्यवहार काप्रयोग होता था?निस्संदेह होता था महाभारत/पुराण/स्मृति मेंनियोग के प्रमाणव्यासजी का काशिराज की पुत्री अम्बालिका सेनियोग- महाभारत आदि पर्व अ 106/6धृतराष्ट्र व्यास के वीर्य से उत्पन्न हुआ- देवी भगवतस्कन्द 2/6/2वन में बारिचर ने युधिस्टर से कहा- में तेरा धर्म नामकपिता- उत्पन्न करने वाला जनक हूँ- महाभारत वन पर्व314/6उस राजा बलि ने पुन: ऋषि को प्रसन्न किया औरअपनी भार्या सुदेष्णा को उसके पास फिर भेजा-महाभारत आदि पर्व अ 104कोई गुणवान ब्राह्मण धन देकर बुलाया जाये जोविचित्र वीर्य की स्त्रियों में संतान उत्पन्न करे-महाभारत आदि पर्व 104/2उत्तम देवर से आपातकाल में पुरुष पुत्र की इच्छा करतेहैं- महाभारत आदि पर्व 120/26परशुराम द्वारा लोक के क्षत्रिय रहित होने परवेदज्ञ ब्राह्मणों ने क्षत्रानियों में संतान उत्पन्नकी- महाभारत आदि पर्व 103/10पांडु कुंती से- हे कल्याणी अब तू किसी बड़े ब्राह्मणसे संतान उत्पन्न करने का प्रयत्न कर- महाभारत आदिपर्व 120/28सूर्ष ने कुंती से कहा- तू मुझसे भय छोड़कर प्रसंग कर-महाभारत आदि पर्व 111/13किसी कुलीन ब्राह्मण को बुलाकर पत्नी कानियोग करा दो, इनमे कोई दोष नहीं हैं- देवी भगवत1/20/6/41व्यास जी के तेज से में भस्म हो जाऊगी इसलिएशरीर से चन्दन लपेटकर भोग कराया- देवी भगवत1/20/65/41काम कला जानने वाले व्यास जी को दासी नेसंतुष्ट किया- देवी भागवत 2/6/4भीष्म जी ने व्यास से कहा माता का वचन मानकर ,हे व्यास सुख पूर्वक परे स्त्री से संतान उत्पत्ति केलिए विहार कर- देवी भागवत 6/24/46सूर्य ने कुंती से कहा-भय मत करो संग करो- महाभारतअ। पर्व 111/13वह तू केसरी का पुत्र क्षेत्रज नियोग से उत्पन्न बड़ापराकर्मी – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/28मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को उत्पन्नकिया – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15राम द्वारा बाली के मारे जाने पर उसकी पत्नीतारा ने सुग्रीव से संग किया – गरुड़ पुराण उतर खंड2/52बिना संतान वाले की स्त्री बीज लेले- गौतम स्मृति29जिसका पति मर गया हैं-वह 6 महीने बाद पिता वभाई नियोग करा दे- वशिष्ट स्मृति 17/486किन्ही का मत हैं की देवर को छोड़कर अन्य सेनियोग न करे- गौतम स्मृति 18जिसका पति विदेश गया हो तो वह नियोग कर ले-नारद स्मृति श्लोक 98/99/100देवर विधवा से नियोग करे- मनु स्मृति 9/62आपातकाल में नियोग भी गौण हैं- मनु 9/58नियोग संतान के लोभ के लिए ही किया जानाचाहिए- ब्राह्मण सर्वस्व पृष्ट 233यदि राजा वृद्ध हो गया या बीमार रहता हो तोअपने मातृकुल तथा किसी अन्य गुणवान सामंत सेअपनी भार्या में नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न करा ले-कौटिलीय शास्त्र 1/17/52पति के मरने पर देवर को दे- देवर के आभाव में इच्छाअनुसार देवे – अग्नि पुराण अध्याय 154राजा विशाप ने स्त्री का सुख प्रजा के लिए त्यागदिया। वशिष्ट ने नियोग से मद्यंती में संतान उत्पन्नकी- विष्णु पुराण 4/4/69शंका 6 . क्या बाइबिल में नियोग का विधान हैं?बाइबिल में नियोगतब यहूदा ने ओनान से कहा- अपनी भाई की बीवी केपास जा और उसके साथ द्वार का धर्म करके अपनेभाई के लिए संतान जन्मा- उत्पत्ति पर्व 38/8जब कई भाई संग रहते हो और उनमें से एक निपुत्र मरजाये तो उसकी स्त्री का ब्याह पर गोत्री से नकिया जाये-उसके पति का भाई उसके पास जाकरउसे अपनी स्त्री कर ले – व्यवस्था विवरण 25/5-10यदि देवर नियोग से इंकार करे तो भावज उसके मुह परथूके और जूते उसके पाव से उतारे- व्यवस्था 25/2शंका 7. क्या इस्लाम में भी नियोग का विधान हैं?इस्लाम में नियोग का विधानसूरत कलम रुकुअ 1वलीद घबराया और तलवार खीचकर अपनी माँ सेकहा- सच बता की मैं किसका बीटा हूँ? माँ ने कहाँ-तेरा बाप नामर्द था, और तेरे चचेरे भाई की आंखेहमारी जायदाद पर लगी हुई थी, मैंने अपने गुलाम सेबदफैली (नियोग ) कराई और तू पैदा हुआ- तफसीर मूजसु 59 और गजिन मतीन सूरत 45शंका 8. क्या आधुनिक समाज में नियोग काव्यवहारिक प्रयोग होता हैं?निस्संदेह होता हैं, आजकल नियोग को spermdonation अर्थात वीर्य दान कहा जाता हैं। यह मुख्यरूप से उन दम्पत्तियों द्वारा प्रयोग किया जाता हैंजिनमें पुरुष संतान उत्पन्न करने में असक्षम होता हैं।चिकित्सकों द्वारा उत्तम कोटि का वीर्य महिलाके शरीर में स्थापित किया जाता हैं जिससे उसेसंतान हो जाये।मुख्य रूप से भाव वही हैं केवल माध्यम अलग हैं।नियोग के मुख्य प्रयोजन को समझे बिना व्यर्थ केआक्षेप करना मूर्खता हैं और अभी भी अगर कोई इसीप्रकार से अनर्गल प्रलाप करना चाहता हैं तो वहसबसे बड़ा मुर्ख है।
आशुतोष भटनागर जी से साभार।
क्या नियोग करना धर्म हैं?जिस किसी भी आस्तिक व्यक्ति ने वैदिकसिद्धान्तों का व्यापक अध्ययन किया है वह कर्मको तीन प्रकार का मानता है।1. धर्म 2. अधर्म, 3. आपद्धर्म।1. धर्म – वह सब कर्म जिनके करने से पुण्य और जिनकेन करने से पाप होता है। जैसे सन्ध्या (सुबह शामपरमात्मा का ध्यान स्मरण) करना, सुपात्र को दानदेना, वाणी से सत्य, प्रिय और पहितकारी बोलना,सुख दुःख और हानि लाभ में समान रहना आदि।2. अधर्म- उन कर्मो का नाम है जिनके करने से पापऔर जिनके न करने से पुण्य होता है जैसे शराब पीना,जुआ खेलना, चोरी, डकैती करना, ठगना, गाली देना,अपमान करना, निरापराध को दण्ड देना आदि।3 .आपद्धर्म – वे सभी कर्म जिनको सामान्यस्थितियों में करना अच्छा नहीं कहा जाता परन्तुजिनको आपदा अथवा संकट में करना पाप कर्म नहींकहलाता हैं। जैसे शल्य चिकित्सक द्वारा प्राणरक्षा के लिए मनुष्य के शरीर पर चाकू चलाना, देशकि सीमा पर शत्रु के प्राणों का हरण करना, जंगल मेंनरभक्षी शेर का शिकार करना, सुनसान द्वीप परप्राण रक्षा के लिये माँस आदि ग्रहण करना आदि।विवाह धर्म का अंग है, व्याभिचार अधर्म का अंग हैठीक वैसे ही नियोग आपद्धर्म का अंग है।शंका 2 . नियोग का मूल उद्देश्य क्या हैं ?प्रिय पाठकों कृपया एक साधारण से प्रश्न परविचार करें। यदि आपसे पूछा जाए कि आप रोटी,चावल, दाल, सब्जी, दूध, दही आदि कब खाते हैं तोआप कहेंगे “प्रतिदिन” । अब यदि आप से पूछा जाएकि कुनैन आप कब खाते हैं तो आप कहेंगे कि “केवलमलेरिया में” । क्या कड़वी कुनैन भी खाने की चीजहै । परन्तु मलेरिया में हम न खाने वाली वस्तु को भीखाते हैं ताकि हमारी जान बच जाए। जैसे रोटीचावल आदि सामान्य जीवन का अंग है ठीक इसीतरह विवाह भी सामान्य जीवन का अंग है । जैसे नखाने वाली कुनैन भी आपत्ति में खाना उचितहोता है इसी तरह सामान्य जीवन का अंग न होतेहुए भी आपत्ति काल में नियोग सही होता है।सभी आक्षेपकों ने नियोग को अनैतिक कहा औरइसकी निन्दा की। परन्तु किसी ने भी इस बात परध्यान नहीं दिया कि नियोग मूलतः समाजव्यवस्था का सन्तुलन रखने और व्याभिचार कोबचाने के लिए ही एक आपद्धर्म है।जैसे स्वस्थ व्यक्ति को दवा की जरूरत नहीं है वैसे हीसामन्य रूप से संतान उत्पन्न होने पर भी नियोग कीजरूरत नहीं है । जैसे कुछ परिस्थितियों मे दवा केबिना शरीर मर जाता है या स्थायी रूप से विकृत /अक्षम हो जाता है वैसे ही बिना नियोग केव्याभिचार से समाज विकृत हो जाता है। जैसेचिकित्सा के कुछ नियम हैं (जैसे दवा की मात्रा /पथ्य/अपथ्य) वैसे नियोग के भी कुछ नियम हैं । जैसेबिना नियम के दवाई लाभ के स्थान पर हानिकरती है वैसे ही बिना नियम पालन के नियोगसमाज को हानि पहुंचाता है।नियोग का केवल और केवल एक ही प्रयोजन हैंअसक्षम व्यक्ति के लिए संतान उतपन्न करने के लिए,विधवा अथवा जिसका पति उपलब्ध न हो उसे संतानउत्पन्न करने के लिए जिससे उसका जीवन सुचारुप्रकार से व्यतीत हो सके, समाज में मुक्त सम्बन्ध परलगाम लगाकर, उसे नियम बद्ध कर व्यभिचार को बढ़नेसे रोकने के लिए।शंका 3. व्याभिचार और नियोग में क्या अन्तर हैं?व्याभिचार और नियोग में अन्तर – बहुत से लोगआलोचना करते हुए कहते हैं कि व्याभिचार औरनियोग एक समान हैं। दोनों में कोइ अन्तर नहीं है।इसलिए नियोग भी पाप और अधर्म है। जैसे अपराधीकिसी को चाकू से घायल करता है या कोई भी अंगकाटता है तो वह अपराध है क्योंकि उसमें कोईनियम और विधि नहीं है। परन्तु जब एक शल्यचिकित्सक किसी रोगी का कोइ अंग चाकू सेकाटता है तो वह नियम से करता है । भले ही वहचाकू से रोगी को चोट पहुंचा रहा है परन्तु वह चाकूका प्रयोग नियम और चिकित्सा विधि के अनुसाररोग़ी के हित के लिए करता है। इसी प्रकारव्याभिचार और वेश्यागमन का कोइ नियम नहीं हैऔर समाज के लिए हानिकारक है। परन्तु नियोगविधि और नियमों से बंधा हुआ है और समाज के हितमें है।शंका 4 . महर्षि दयानन्द के नियोग विषय पर क्याविचार हैं?ॠग्वेदादि भाष्य भूमिका के नियोग प्रकरण मेंमहर्षि दयानन्द जी लिखते हैं –“इसी प्रकार से विधवा और पुरूष तुम दोनो आपत्कालमें धर्म करके सन्तान उत्पत्ति करो और उत्तम-उत्तमव्यवहारों को सिद्ध करते जाओ। गर्भ हत्या याव्याभिचार कभी मत करो। किन्तु नियोग ही करलो। यही व्यवस्था सबसे उत्तम है।”इस वाक्य से अर्थ निकलता है -1. नियोग आपद्धर्म हैक्योंकि नियोग केवल आपत्काल मे किया जाता है। 2. व्याभिचार और गर्भपात अधर्म/महापाप हैइसलिए व्याभिचार और गर्भपात नहीं करनाचाहिए। 3. नियोग व्यभिचार और गर्भपात जैसेमहापापों से बचने का उपाय है।अधिक जानकारी के लिए सत्यार्थ प्रकाश मेंनियोग विषय को पढ़े।शंका 5. क्या प्राचीन काल में नियोग व्यवहार काप्रयोग होता था?निस्संदेह होता था महाभारत/पुराण/स्मृति मेंनियोग के प्रमाणव्यासजी का काशिराज की पुत्री अम्बालिका सेनियोग- महाभारत आदि पर्व अ 106/6धृतराष्ट्र व्यास के वीर्य से उत्पन्न हुआ- देवी भगवतस्कन्द 2/6/2वन में बारिचर ने युधिस्टर से कहा- में तेरा धर्म नामकपिता- उत्पन्न करने वाला जनक हूँ- महाभारत वन पर्व314/6उस राजा बलि ने पुन: ऋषि को प्रसन्न किया औरअपनी भार्या सुदेष्णा को उसके पास फिर भेजा-महाभारत आदि पर्व अ 104कोई गुणवान ब्राह्मण धन देकर बुलाया जाये जोविचित्र वीर्य की स्त्रियों में संतान उत्पन्न करे-महाभारत आदि पर्व 104/2उत्तम देवर से आपातकाल में पुरुष पुत्र की इच्छा करतेहैं- महाभारत आदि पर्व 120/26परशुराम द्वारा लोक के क्षत्रिय रहित होने परवेदज्ञ ब्राह्मणों ने क्षत्रानियों में संतान उत्पन्नकी- महाभारत आदि पर्व 103/10पांडु कुंती से- हे कल्याणी अब तू किसी बड़े ब्राह्मणसे संतान उत्पन्न करने का प्रयत्न कर- महाभारत आदिपर्व 120/28सूर्ष ने कुंती से कहा- तू मुझसे भय छोड़कर प्रसंग कर-महाभारत आदि पर्व 111/13किसी कुलीन ब्राह्मण को बुलाकर पत्नी कानियोग करा दो, इनमे कोई दोष नहीं हैं- देवी भगवत1/20/6/41व्यास जी के तेज से में भस्म हो जाऊगी इसलिएशरीर से चन्दन लपेटकर भोग कराया- देवी भगवत1/20/65/41काम कला जानने वाले व्यास जी को दासी नेसंतुष्ट किया- देवी भागवत 2/6/4भीष्म जी ने व्यास से कहा माता का वचन मानकर ,हे व्यास सुख पूर्वक परे स्त्री से संतान उत्पत्ति केलिए विहार कर- देवी भागवत 6/24/46सूर्य ने कुंती से कहा-भय मत करो संग करो- महाभारतअ। पर्व 111/13वह तू केसरी का पुत्र क्षेत्रज नियोग से उत्पन्न बड़ापराकर्मी – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/28मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को उत्पन्नकिया – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15राम द्वारा बाली के मारे जाने पर उसकी पत्नीतारा ने सुग्रीव से संग किया – गरुड़ पुराण उतर खंड2/52बिना संतान वाले की स्त्री बीज लेले- गौतम स्मृति29जिसका पति मर गया हैं-वह 6 महीने बाद पिता वभाई नियोग करा दे- वशिष्ट स्मृति 17/486किन्ही का मत हैं की देवर को छोड़कर अन्य सेनियोग न करे- गौतम स्मृति 18जिसका पति विदेश गया हो तो वह नियोग कर ले-नारद स्मृति श्लोक 98/99/100देवर विधवा से नियोग करे- मनु स्मृति 9/62आपातकाल में नियोग भी गौण हैं- मनु 9/58नियोग संतान के लोभ के लिए ही किया जानाचाहिए- ब्राह्मण सर्वस्व पृष्ट 233यदि राजा वृद्ध हो गया या बीमार रहता हो तोअपने मातृकुल तथा किसी अन्य गुणवान सामंत सेअपनी भार्या में नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न करा ले-कौटिलीय शास्त्र 1/17/52पति के मरने पर देवर को दे- देवर के आभाव में इच्छाअनुसार देवे – अग्नि पुराण अध्याय 154राजा विशाप ने स्त्री का सुख प्रजा के लिए त्यागदिया। वशिष्ट ने नियोग से मद्यंती में संतान उत्पन्नकी- विष्णु पुराण 4/4/69शंका 6 . क्या बाइबिल में नियोग का विधान हैं?बाइबिल में नियोगतब यहूदा ने ओनान से कहा- अपनी भाई की बीवी केपास जा और उसके साथ द्वार का धर्म करके अपनेभाई के लिए संतान जन्मा- उत्पत्ति पर्व 38/8जब कई भाई संग रहते हो और उनमें से एक निपुत्र मरजाये तो उसकी स्त्री का ब्याह पर गोत्री से नकिया जाये-उसके पति का भाई उसके पास जाकरउसे अपनी स्त्री कर ले – व्यवस्था विवरण 25/5-10यदि देवर नियोग से इंकार करे तो भावज उसके मुह परथूके और जूते उसके पाव से उतारे- व्यवस्था 25/2शंका 7. क्या इस्लाम में भी नियोग का विधान हैं?इस्लाम में नियोग का विधानसूरत कलम रुकुअ 1वलीद घबराया और तलवार खीचकर अपनी माँ सेकहा- सच बता की मैं किसका बीटा हूँ? माँ ने कहाँ-तेरा बाप नामर्द था, और तेरे चचेरे भाई की आंखेहमारी जायदाद पर लगी हुई थी, मैंने अपने गुलाम सेबदफैली (नियोग ) कराई और तू पैदा हुआ- तफसीर मूजसु 59 और गजिन मतीन सूरत 45शंका 8. क्या आधुनिक समाज में नियोग काव्यवहारिक प्रयोग होता हैं?निस्संदेह होता हैं, आजकल नियोग को spermdonation अर्थात वीर्य दान कहा जाता हैं। यह मुख्यरूप से उन दम्पत्तियों द्वारा प्रयोग किया जाता हैंजिनमें पुरुष संतान उत्पन्न करने में असक्षम होता हैं।चिकित्सकों द्वारा उत्तम कोटि का वीर्य महिलाके शरीर में स्थापित किया जाता हैं जिससे उसेसंतान हो जाये।मुख्य रूप से भाव वही हैं केवल माध्यम अलग हैं।नियोग के मुख्य प्रयोजन को समझे बिना व्यर्थ केआक्षेप करना मूर्खता हैं और अभी भी अगर कोई इसीप्रकार से अनर्गल प्रलाप करना चाहता हैं तो वहसबसे बड़ा मुर्ख है।
आशुतोष भटनागर जी से साभार।
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