स्वामी दयानंद के विषय में भांग खाने को लेकर एक भ्रान्ति का प्रचार पाखंड गुरु रामपाल और उसके अंधे चेले कर रहे हैं।

स्वामी दयानंद के विषय में भ्रान्ति और उसका निवारण

स्वामी दयानंद के विषय में भांग खाने को लेकर एक भ्रान्ति का प्रचार पाखंड गुरु रामपाल और उसके अंधे चेले कर रहे हैं।

विडंबना यह हैं की वे न तो सत्य जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं। रामपाल और उसके चेलो को देखकर ऐसा लगता हैं जैसे एक अँधा दूसरे अंधों को रास्ता दिखा रहा हैं।
स्वामी दयानंद का जन्म शैव परिवार में हुआ था। उनके यहाँ पर शिव भगवान की पूजा पीढ़ियों से की जाती थी। पौराणिक समाज में शिव भक्ति में विशेष रूप से सोमवार और शिवरात्रि के दिन भांग, धतुरा, बिल्वपत्र आदि से पूजा तो आज भी प्रचलित हैं।
उनके अलावा नागा साधू समाज और सूफी समाज में भी यह मान्यता हैं की भांग के नशे में चूर होना ईश्वर भक्ति की चरम सीमा तक जाने के समान हैं।
वैसे कबीर को भी सूफी समाज का अंग माना जाता हैं।
स्वामी दयानंद ईश्वर की खोज में गृह त्याग कर निकले थे। उनकी अवस्था एक जिज्ञासु के समान थी जो सत्य की खोज कर रहा था। उनके जीवन चरित को पढ़ने से इस बात का ज्ञात भली भान्ति हो जाता हैं की वे किस प्रकार साधुओं का ज्ञान प्राप्ति के लिए संसर्ग करते थे। ऐसे में शैव साधुओं द्वारा ईश्वर प्राप्ति के लिए चित को एकाग्र करने का लिए भांग का ग्रहण करना बताया जाना किसी भी प्रकार की अतिश्योक्ति नहीं हैं।
कुल से शैव और शैव साधुओं का कहना मान कर स्वामी दयानंद ने अगर भांग को अल्पकाल के लिए ग्रहण किया भी तो उसका उद्देश्य नशा करना नहीं था।
परन्तु बुद्धिमान उसको कहते हैं जो सत्य के ग्रहण और असत्य के त्याग के लिए सदा तत्पर रहता हो। स्वामी दयानंद का तो पूरा जीवन इसी सिद्धांत का प्रत्यक्ष हैं।
अपने स्वलिखित जीवन चरित्र के पृष्ठ १५ पर स्वामी दयानंद स्पष्ट लिखते हैं
“तत्पश्चात जिस वस्तु की खोज में था उसके अर्थ आगे को चल दिया। और असुज सुदी २ सं १९१३ को दुर्गा कुण्ड के मंदिर पर जो चांडालगढ़ में हैं, पहुँचा। वहाँ दस दिन व्यतीत किये यहाँ मैंने चावल खाने सर्वथा छोड़ दिये और केवल दूध पर निर्वाह करके दिन रात योग विद्या अध्ययन और अभ्यास में दिन रात तत्पर रहा। दौर्भाग्यवश वहाँ मुझे एक बड़ा दोष लग गया, अर्थात भांग पीने का स्वाभाव हो गया”
पाठक ध्यान दे स्वामी दयानंद यहाँ पर क्या कह रहे हैं “वहाँ मुझे एक बड़ा दोष लग गया, अर्थात भांग पीने का स्वाभाव हो गया”
स्वामी जी यहाँ स्पष्ट रूप से कह रहे हैं की मुझे भांग पीने का दोष लग गया था।
यह स्पष्ट होता हैं की स्वामी जी ने न केवल भांग पीने को गलत माना हैं अपितु अल्पकाल के पश्चात ज्ञान होने पर उन्होंने इसे त्याग भी दिया था। इसका प्रमाण पंडित लेखराम लिखित जीवन चरित्र में स्पष्ट रूप से इस प्रकार मिलता हैं।
( श्री कन्हैयालाल इन्जीनियर , रुड़की , से प्रशनोत्तर — २५ जुलाई , १८७८ )

” क्या मद की अवस्था में ईश्वर – चिन्तन हो सकता है ? ”

स्वामी जी जिन दिनों रुड़की में थे तो लाला कन्हैयालाल साहब इन्जीनियर ने प्रश्न किया कि मद ( नशा ) की अवस्था में चित्त एकाग्र हो जाता है और जिस विषय की ओर चित्त आकृष्ट होता है उसी में डूबा रहता है । ” इसलिए इस अवस्था में जैसा अच्छा ईश्वर का ध्यान हो सकता है वैसा अन्य अवस्था में नहीं । ”
स्वामी जी ने कहा कि मद का नियम ऐसा ही है जैसा कि आप वर्णन करते हैं कि जिस वस्तु का ध्यान चित्त में होता है मनुष्य उसी में डूबा रहता है परन्तु वस्तुओं की वास्तविकता का ठीक ध्यान अनुकूलता से हुआ करता है । जब हम एक वस्तु का ध्यान करते हैं और उसका सम्बन्ध दूसरी वस्तुओं के साथ करके देखते हैं और उस वस्तु और अन्य वस्तुओं में सम्पर्क स्थापित करके देखते हैं तब उस वस्तु का ठीक ध्यान चित्त में प्रकट होता है और अन्यथा उस वस्तु का ध्यान वास्तविकता के विरुद्ध प्रकट हुआ करता है और गुणी और गुण की अपेक्षा नहीं रहती ।
” इसलिए मद की अवस्था में ईश्वर का ध्यान झूठा और अवगुणों के साथ होता है ”

प्रश्नकर्त्ता को यह उत्तर बहुत अच्छा लगा और पूर्ण सन्तोष हो गया ।

ला . साहब स्वयं मद्य नहीं पीते थे प्रत्युत उस से घृणा करते थे परन्तु लोगों की वर्तमान शंका को स्वयं उपस्थित करके उत्तर माँगा था ।
( पं . लेखराम कृत जीवनी , पृष्ठ ३९५ )

( भिन्न संस्करणों में पृष्ठ संख्या भिन्न हो सकती है , इसलिए पृष्ठ संख्या पर विवाद न करें )

मुर्ख रामपाल अपने आपको तत्वदर्शी कहता हैं और पंडित लेखराम लिखित स्वामी दयानंद के जीवन चरित के उस अंश को अपने चेलो को मुर्ख बनाने के लिए दिखाता हैं जब स्वामी जी शैव साधू के समान जीवन व्यतीत कर रहे थे और भांग का ग्रहण करते थे।
बन्धुओं , यहाँ प्रश्न यह है कि , क्या एक नशेड़ी / भंगेड़ी ऐसा उत्तर दे सकता है ?
रामपाल अगर इतना ही तत्वदर्शी हैं तो उपरलिखित भांग आदि मादक पदार्थों के विषय में स्वामी जी की धारणा को अपने चेलों को क्यूँ नहीं दिखाता। इस प्रकार के व्यवहार को धूर्तता नहीं कहेगे तो क्या कहेगे।
प्रस्तुत वार्त्तांश उसी जीवनी से है जिस जीवनी का हवाला देकर रामपाल एंड मण्डली , स्वामी दयानन्द जी को नशेड़ी घोषित करने का कुप्रयास कर रहे हैं ।
सत्यार्थ प्रकाश में भी स्वामी दयानंद स्पष्ट रूप से मादक पदार्थ के ग्रहण करने की मनाही करते हैं:-
१. सत्यार्थ प्रकाश- दशम समुल्लास पृष्ठ २१९- ७१ संस्करण, जनवरी २००९ प्रकाशक- आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली
मनुस्मृति का सन्दर्भ देकर स्वामी दयानंद यहाँ पर किसी भी प्रकार के नशे से बुद्धि का नाश होना मानते हैं।
वर्जयेन्मधु मानसं च – मनु
जैसे अनेक प्रकार के मद्य, गांजा, भांग, अफीम आदि –
बुद्धिं लुम्पति यद् द्रव्यम मद्कारी तदुच्यते।।
जो-जो बुद्धि का नाश करने वाले पदार्थ हैं उनका सेवन कभी न करें।

२. सत्यार्थ प्रकाश- एकादश समुल्लास पृष्ठ २८१ – २८२संस्करण, जनवरी २००९ प्रकाशक- आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली
स्वामी दयानंद भांग आदि मादक पदार्थ के ग्रहण करने वाले को कुपात्र कहते हैं।
(प्रश्न)- कुपात्र और सुपात्र का लक्षण क्या हैं?
(उत्तर) जो छली, कपटी, स्वार्थी, विषयी, काम, क्रोध, लोभ, मोह से युक्त, परहानी करने वाले लम्पति, मिथ्यावादी, अविद्वान, कुसंगी, आलसी : जो कोई दाता हो उसके पास बारम्बार मांगना, धरना देना, न किये पश्चात भी हठता से मांगते ही जाना, संतोष न होना, जो न दे उसकी निंदा करना, शाप और गाली प्रदानादी देना। अनेक वार जो सेवा करे और एक वार न करे तो उसका शत्रु बन जाना, ऊपर से साधु का वेश बना लोगों को बहकाकर ठगना और अपने पास पदार्थ हो तो भी मेरे पास कुछ भी नहीं हैं कहना, सब को फुसला फुसलू कर स्वार्थ सिद्ध करना, रात दिन भीख मांगने ही में प्रवृत रहना, निमंत्रण दिए पर यथेष्ट भांग आदि मादक द्रव्य खा पीकर बहुत सा पराया पदार्थ खाना, पुन: उन्मत होकर प्रमादी होना, सत्य-मार्ग का विरोध और जूठ-मार्ग में अपने प्रयोजनार्थ चलना, वैसे ही अपने चेलों को केवल अपनी सेवा करने का उपदेश करना, अन्य योग्य पुरुषों की सेवा करने का नहीं, सद विद्या आदि प्रवृति के विरोधी, जगत के व्यवहार अर्थात स्त्री, पुरुष, माता, पिता, संतान, राजा, प्रजा इष्टमित्रों में अप्रीति कराना की ये सब असत्य हैं और जगत भी मिथ्या हैं। इत्यादि दुष्ट उपदेश करना आदि कुपात्रों के लक्षण हैं।

३. सत्यार्थ प्रकाश- एकादश समुल्लास पृष्ठ २९० – २९१ संस्करण, जनवरी २००९ प्रकाशक- आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली
स्वामी दयानंद यहाँ पर स्पष्ट रूप से शैव नागा साधु के व्यवहार को गलत सिद्ध कर रहे हैं और किसी भी प्रकार के नशे को साधु के लिए वर्जित कर रहे हैं।
(खाखी) देख! हम रात दिन नंगे रहते, धूनी तापते, गांजा चरस के सैकड़ों दम लगाते, तीन-तीन लोटा भांग पीते, गांजे, भांग, धतूरा ली पत्ती की भाजी (शाक) बना खाते, संखिया और अफीम भी चट निगल जाते, नशा में गर्क रात दिन बेगम रहते, दुनिया को कुछ नहीं समझते, भीख मांगकर टिक्कड़ बना खाते, रात भर ऐसी खांसी उठती जो पास में सोवे उसको भी नींद कभी न आवे, इत्यादि सिद्धियाँ और साधूपन हम में हैं, फिर तू हमारी निंदा क्यूँ करता हैं?चेत बाबूड़े! जो हमको दिक्कत करेगा हम तुमको भस्म कर डालेगे।
(पंडित) यह सब असाधु मुर्ख और गर्वगंडों के हैं, सधुयों के नहीं! सुनों !
‘साध्नोती पराणी धर्मकार्याणि स साधु:’
जो धर्म युक्त उत्तम काम करे, सदा परोपकार में प्रवृत हो, कोई दुर्गुण जिसमें न हो, विद्वान, सत्योपदेश से सब का उपकार करे उसको ‘साधु’ कहते हैं।

स्वामी जी सत्यप्रेमी थे इसलिए उन्होंने स्वीकार किया कि सत्य की खोज में घर छोड़ने के बाद उनका अनेक मण्डलेश्वरो , बाबाओं से सम्पर्क हुआ । उनमे से एक धूर्त मण्डली ने उन्हें भांग का व्यसन लगा दिया । लेकिन मण्डली छोड़ने के बाद स्वामी जी ने उस व्यसन को त्याग दिया
। दयानन्द भक्त , लेखराम भी सत्यप्रेमी थे इसलिए उन्होंने भी इस प्रसंग का वर्णन कर दिया ।

जीवनी में व्यसन का वर्णन है ….तो ….उसके परित्याग का भी वर्णन है ।

अब ध्यातव्य एवं प्रष्टव्य है कि , क्या मनुष्य के जीवन की अल्पकालिक अवस्था को उसके सम्पूर्ण जीवन पर आरोपित करना बुद्धिमत्ता है ?????

एक मनुष्य शिशु अवस्था में शैया पर और वस्त्रों में ही मल – मूत्र त्याग देता है लेकिन उस अवस्था के समाप्त होने पर वह ऐसा नहीं करता और कोई उसपर यह आक्षेप नहीं करता कि वह – शैया पर और वस्त्रों में ही मल – मूत्र त्याग देताहै ।
इसी न्याय से स्वामी दयानन्द के जीवन की अल्पकालिक अवस्था ( भांग – व्यसन ) को लेकर उनके पूरे जीवन पर आक्षेप लगाना निराधार है ।

पूरी जीवनी को पढने के लिए समय और धैर्य की आवश्यकता है ।
दो-चार पंक्तियाँ पढने से न तो दयानन्द-चरित समझ आएगा और न ही दयानन्द-दर्शन ।

कुछ लोग इस बिन्दु पर निष्पक्ष भाव से चिन्तन करेंगे और बाकी तोते की भाँती रटी हुई पंक्तियाँ दोहरायेंगे ।
पाखंड खंडनी

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